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बुधवार, अप्रैल 13, 2011

सच्चे दोस्त बनो अभियान

सन 2000-2001 में मेरी दोस्ती की पवित्रता के विज्ञापन समाचारों पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए.विज्ञापनों की प्रतिक्रिया में दूषित मानसिकता और अच्छी विचारधारा के लोगों से पत्र-व्यवहार द्वारा कटु और अच्छे अनुभव प्राप्त हुए. जिसका जिक्र मैंने अपनी पहली पोस्ट में किया था. लड़कियों के पत्र मिलने पर एक छोटा-सा पत्र उनके भेजे पत्र के जवाब में हस्तलिखित भेजने के साथ ही सभी लड़कियों को कोमन एक पत्र "सच्चे दोस्त बनो अभियान" के तहत टाईप करवाकर रखे की फोटोस्टेट प्रति भेजता था. उस पत्र में मेरी विचारधारा और समाज व देश की प्रति जिम्मेदारी के साथ फर्ज और कर्तव्य को पता चलता था. आप जाने एक 24-25 वर्ष के नौजवान की उस समय क्या सोच व विचारधारा हुआ करती थीं. टिप्पणियों की उम्मीद उनसे जो अच्छे विचार को महत्व देते हो.  
 

रविवार, मार्च 20, 2011

बड़ी नाजुक होती है दोस्ती की डोर-2

अपनी पत्नी द्वारा दर्ज फर्जी मुकद्दमों के कारण मानसिक "डिप्रेशन" की बीमारी के अलावा अनेकों बिमारियों की वजय से कुछ अच्छी रचनाएँ /लेख  नहीं लिख/कह पाता  हूँ. इसलिए अपने ब्लॉग पर भी नियमित रूप से पोस्ट नहीं लिख पाता हूँ. मगर अपने "सच्चा दोस्त बनो और सच्चा दोस्त बनाओ" अभियान के तहत दोस्तों की मदद मिलने के बाद और अपने अनुभव के साथ ही अपनी खोजी पत्रकारिता के अनुभव से दोस्ती पर एक लेख "बड़ी नाजुक होती है दोस्ती की डोर" मैंने मासिक पत्रिका "गृहलक्ष्मी" के लिए सन 2001 लिखा था. लेख प्रकाशित होने के बाद ही पत्रिका को काफी पत्र प्राप्त हुए थें. जिसमें उपरोक्त लेख के बारे में जिक्र था. फिर पत्रिका ने अपनी नवीनतम पत्रिका में कुछ पत्रों को स्थान भी दिया था. उम्मीद है आपको उपरोक्त लेख जरुर पसंद आयेगा. अगर आपके पास समय हो तो कृपया किल्क करके संलग्न लेख "बड़ी नाजुक होती है दोस्ती की डोर" जरुर पढ़ें.

मंगलवार, मार्च 08, 2011

दोस्ती कम, अश्लील बातें ज्यादा

"फ़ोन फ्रेंड्स क्लब-दोस्ती कम, अश्लील बातें ज्यादा"
 आ अपनी पत्नी द्वारा फर्जी मुकद्दमों के कारण मानसिक "डिप्रेशन" की बीमारी के अलावा अनेकों बिमारियों की वजय से कुछ अच्छी रचनाएँ /लेख  नहीं लिख/कह पाता  हूँ. न्याय व्यवस्था के अधिकारियों द्वारा अपना कर्तव्य व फर्ज ईमानदारी से नहीं निभाने के कारण कैसे मेरा जीवन और भविष्य लगभग चौपट हो गया है. इसलिए अपने ब्लॉग पर भी नियमित रूप से पोस्ट नहीं लिख पाता हूँ. मगर अपने "सच्चा दोस्त बनो और सच्चा दोस्त बनाओ" अभियान के तहत दोस्तों की मदद मिलने के बाद अपनी खोजी पत्रकारिता के अनुभव से एक लेख "फ़ोन फ्रेंड्स क्लब-दोस्ती कम, अश्लील बातें ज्यादा" मैंने मासिक पत्रिका "गृहलक्ष्मी" के लिए सन 2001 लिखा था. लेख प्रकाशित होने के 60 दिन बाद ही लेख में जिक्र सामाजिक समस्या का निवारण करते हुए सरकार ने ऐसे फ़ोन लाईन को बंद कर दिया था. जिससे युवा पीढ़ी पर दुष्प्रभाव पड़ रहा था. जिसे पत्रिका ने अपने टाईटल (शीर्षक) पेज पर भी प्रमुख्यता से प्रकाशित किया था. उम्मीद है आपको उपरोक्त लेख जरुर पसंद आयेगा. अगर आपके पास समय हो तो कृपया किल्क करके संलग्न लेख "फ़ोन फ्रेंड्स क्लब-दोस्ती कम, अश्लील बातें ज्यादा" जरुर पढ़ें.
 
                           

रविवार, फ़रवरी 20, 2011

आलोचना करें


आलोचना करें, ईनाम पायें ! 

आप मेरे ब्लॉग की आलोचना कीजिए और 200 रूपये का नकद ईनाम (पांच व्यक्ति) मनीआर्डर से घर बैठे ही पायें!

 मेरे ब्लॉग पर और क्या-क्या होना चाहिए, मेरे पास अनेकों जनहित से जुड़ी कुछ रिकोर्टिग है उन्हें कैसे ब्लॉग पर डाला जा सकता है? इसकी सुन्दरता ओर कैसे सुंदर हो सकती हैं, आलोचना करते समय अपशब्दों प्रयोग न करके बल्कि यह बताये कि-इस कमी को ऐसे ठीक किया जा सकता है. किसी भी प्रकार की जानकारी या सुझाव हिंदी में होने के साथ-साथ आम बोलचाल की भाषा में होना चाहिए. जानकारी देते समय यह याद रखना है कि-किसी भी प्रकार की जानकारी के साथ उदाहरण भी देना है. जैसे-मैंने इन्टरनेट या अन्य सोफ्टवेयर में हिंदी की टाइपिंग कैसे करें और हिंदी में ईमेल कैसे भेजें में दिया है और कहाँ पर क्या-क्या सावधानी बरतनी होगी. आप चाहे एक ही सुझाव दें मगर उसका बताने का तरीका बिलकुल आसान होना चाहिए. जानकारी आप ईमेल से भी दे सकते हैं मगर अपना पूरा नाम, पिनकोड सहित पूरा पता और फ़ोन नं. के साथ ही अपना ईमेल आई डी भी लिखना न भूलें.

इसके अतिरिक्त आप निडर है और मेरे प्रकाशन के साथ "संवाददाता", लेखक या अन्य किसी प्रकार के रूप (पद) में जुड़ना चाहते हैं तो अपनी उपरोक्त इच्छा व्यक्त करें.

शनिवार, फ़रवरी 05, 2011

जीवन के उतराव-चढ़ाव का उल्लेख करती एक आत्मकथा

भ्रष्ट व अंधी-बहरी न्याय व्यवस्था से प्राप्त अनुभवों की कहानी का ही नाम है
"सच का सामना"
वाह! क्या कहने है? किसी ने क्या खूब पक्तियां कही है कि-प्यार एक अहसास है, एक ऐसा एहसास जिसने लाखों लोगों के सपने संजोये, लाखों मुर्दा दिलों को जीने की राह दिखाई....... एक ऐसा एहसास जिसने लाखों लोगों को जीते जी मार दिया, वे ना जी सके और ना ही मर सके, बस एक जिन्दा लाश बनकर रह गए......प्यार जो पूजा भी है...... प्यार जो जिन्दा इंसान की मौत का कारण भी है और उसका कफन भी है... प्यार हरेक के लिए कुछ अलग, कुछ जुदा, कुछ खट्टा और कुछ मीठा है. कुछ लोग मोहब्बत करके हो जाते हैं बर्बाद, कुछ लोग मोहब्बत करके कर देते हैं बर्बाद.
                  मैंने ऐसा अनुभव किया कि-अक्सर लोग दूसरों के जीवन में ताकझांक की कोशिश भी खूब करते/होती हैं. लेकिन अपने दांपत्य जीवन की परतें खोलने का प्रयास कोई नहीं करता. मगर कुछ महिलाएं अपनी करीबी सहेलियों से थोड़ा बहुत शेयर भी कर लेती है. लेकिन पुरुष इस पर कुछ कहना अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ समझता है. वह अपने दांपत्य जीवन को लोहे की जंजीरों से जकड़े रखना चाहता है. मगर कभी-कभी ऐसा होता है कि-एक सभ्य और सम्मानित पुरुष वेकसूर होते हुए भी कसूरवार ठहरा दिया जाता है. तब वो पुरुष अपने दांपत्य जीवन की परतें खोलने के लिए मजबूर हो जाता है.
                            मैंने पूरी ईमानदारी से दांपत्य जीवन की डोर चलाने की बहुत कोशिश की. मगर दूषित बीमार मानसिकता वाली पत्नी और लालची सुसरालियों की साज़िश के साथ ही फर्जी केस दर्ज करने वाले अधिकारी और रिश्वत मांगते पुलिस अधिकारी के अलावा सरकारी वकील,धोखा देते वकीलों की कार्यशैली, भ्रष्ट अंधी-बहरी न्याय व्यवस्था से प्राप्त अनुभवों की कहानी का ही नाम है
"सच का सामना"
शकुंतला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन परिवार के मैनेजिंग एडिटर एंड पब्लिशिंग डायरेक्टर रमेश कुमार जैन उर्फ़ सिरफिरा के प्रेम-विवाह करने से पहले और बाद के जीवन में आये उतराव-चढ़ाव का उल्लेख करती एक आत्मकथा
"सच का सामना"
उपन्यास के रूप में बहुत जल्द ही प्रकाशित होगी.
एक महत्वपूर्ण वैवाहिक सलाह:- आप पिछले विवादों को बार-बार कुरेदकर एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करें. जो भी मामला या विवाद एक बार सुलझा लें उसके बाद उसे भूल जाएँ. लेकिन कहीं बार कुछ महिलाएं पुराने विवादों को बार-बार कुरेदकर अपने परिवार को अपने हाथों से उजाड़ चुकी हैं. आप कदपि ऐसा करें. # निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन:9868262751, 9910350461

शनिवार, जनवरी 01, 2011

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!


नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आप सभी पाठकों / दोस्तों को "शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन" परिवार की ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं! आप व आपके परिवार के लिए नववर्ष 2011 मंगलमय हो! इन्हीं शब्दों के साथ ही .....

सुनहरे सपनों की झंकार, लाया है नववर्ष
खुशियों के अनमोल उपहार लाया है नववर्ष
आपकी राहों में फूलों को बिखराकर लाया है नववर्ष
महकी हुई बहारों की ख़ुशबू लाया है नववर्ष
अपने साथ नयेपन का तूफान लाया है नववर्ष
स्नेह और आत्मीयता से आया है नववर्ष
सबके दिलों पर छाया है नववर्ष
आपको मुबारक हो दिल की गराईयों से नववर्ष!
नए साल की नई सुबह, लाये नई खुशियों की सौगात, 
सुख-समृध्दी का हो साम्राज्य, सपनों को मिले एक नया आयाम!
यह नववर्ष शुभ हो, नई खुशियों को लाये! 
यह साल मनमोहक फूलों की तरह से हो आपका जीवन!!
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