दोस्ती की बड़ी नाजुक होती है डोर
दोस्ती शब्द से ही एक पवित्र रिश्ते का एहसास होता है. इस रिश्ते में ऐसी मिठास है. जो जीवन को खुशनुमा बनाये रखती है. अगर आप दोस्ती के वास्तविक अर्थ से अवगत है और अपनी दोस्ती को पूरे विश्वास, निष्ठा व वफादारी से निभाने की क्षमता रखते हैं. तब ही आपको दोस्ती के लिए अपने हाथ बढ़ाने चाहिए. वरना यह कहकर संतोष कर लीजिए कि-
"दुनिया में राज-ए-दिल, दोस्ती करते तो हम किससे. मिलते ही नहीं, जहाँ में हमारे ख्याल के"
आपके लिए यह ब्लॉग "सच्चा दोस्त" एक "पवित्र दोस्ती" का दायरा बढ़ाने की कोशिश के साथ ही अच्छे व बुरे अनुभवों को व्यक्त करता है.
आज से लगभग 19-20 साल पहले की बात करूँ तो मुझे लड़कियों से "पवित्र दोस्ती" का बहुत शौंक था. यह मेरा सौभाग्य रहा कि-उन लड़कियों से उनकी शादी होने तक और बाद तक हमारी दोस्ती की पवित्रता बनी रही. आज उनका दांपत्य जीवन सुखमय है. मैंने अपनी दोस्ती की सीमाएं भी खुद निर्धारित की और उनका पालन स्वंय भी किया. इसके अलावा उन लड़कियों को पालन करने के कड़े निर्देश देते हुए दोस्ती की पवित्रता कायम रखने के लिए नियमों का पालन करने हेतु कहा. मुझे लड़कियों से दोस्ती का बहुत लाभ हुआ. अपने दोस्तों की मदद (विचारों का आदान-प्रदान द्वारा) से सन 1997 में अपना प्रकाशन "जीवन का लक्ष्य" शुरू कर दिया था. जहाँ एक ओर 20-21 साल का युवा मस्ती में चूर रहता था. वहीँ उस उम्र में समाज और देशहित में युवाओं को भटकने से रोकने हेतु देश/समाज में फैली बुराईयों के बारे में लेखन करना शुरू कर दिया.
सन 2000-2001 में मेरी दोस्ती की पवित्रता के विज्ञापन समाचारों पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए.विज्ञापनों की प्रतिक्रिया में दूषित मानसिकता और अच्छी विचारधारा के लोगों से पत्र-व्यवहार द्वारा कटु और अच्छे अनुभव प्राप्त हुए. इन्हीं पत्रों की रोचकता को समय-समय पर उपरोक्त ब्लॉग के माध्यम से पेश करूँगा. क्या आप भी देखना चाहेंगे? मेरी दोस्ती की पवित्रता वाले विज्ञापनों को, तो फिर देख (नीचे) लीजिये आप भी दोस्ती की पवित्रता का एक नमूना.
लड़कों से दोस्ती करने की वजय लड़कियों से दोस्ती करने में सबसे ज्यादा यह लाभ हुआ कि-बहुत गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से अधिक शिक्षा प्राप्त न करने के बावजूद भी अपने आप को "काबिल" बनाने में कामयाब रहा. माताश्री-पिताश्री और दोस्तों से मिले ज्ञान और अच्छे संस्कारों की बदौलत ही अपने क्षेत्र में ईमानदारी और अपनी निडरता के कारण अच्छी छवि बनाई.लेकिन मेरी दूषित मानसिकता वाली पत्नी ने ही लगभग 5 साल पहले अपनी अच्छी विचारधारा के चलते उठाये एक साहसिक कदम को ही मेरी छवि को आज धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. शेष फिर..आपका अपना शुभचिंतक दोस्त-सच्चा दोस्त.