आज अपनी पत्नी द्वारा दर्ज फर्जी मुकद्दमों के कारण मानसिक "डिप्रेशन" की बीमारी के अलावा अनेकों बिमारियों की वजय से कुछ अच्छी रचनाएँ /लेख नहीं लिख/कह पाता हूँ. इसलिए अपने ब्लॉग पर भी नियमित रूप से पोस्ट नहीं लिख पाता हूँ. मगर अपने "सच्चा दोस्त बनो और सच्चा दोस्त बनाओ" अभियान के तहत दोस्तों की मदद मिलने के बाद और अपने अनुभव के साथ ही अपनी खोजी पत्रकारिता के अनुभव से दोस्ती पर एक लेख "बड़ी नाजुक होती है दोस्ती की डोर" मैंने मासिक पत्रिका "गृहलक्ष्मी" के लिए सन 2001 लिखा था. लेख प्रकाशित होने के बाद ही पत्रिका को काफी पत्र प्राप्त हुए थें. जिसमें उपरोक्त लेख के बारे में जिक्र था. फिर पत्रिका ने अपनी नवीनतम पत्रिका में कुछ पत्रों को स्थान भी दिया था. उम्मीद है आपको उपरोक्त लेख जरुर पसंद आयेगा. अगर आपके पास समय हो तो कृपया किल्क करके संलग्न लेख "बड़ी नाजुक होती है दोस्ती की डोर" जरुर पढ़ें.
दोस्ती शब्द से ही एक पवित्र रिश्ते का एहसास होता है अगर आप दोस्ती के वास्तविक अर्थ से अवगत है और अपनी दोस्ती को पूरे विश्वास,निष्ठां व वफादारी से निभाने की क्षमता रखते हैं तब ही आपको दोस्ती के लिए अपने हाथ बढ़ाने चाहिए.वरना यह कहकर संतोष कर लीजिए कि-"दुनिया में राज-ए-दिल,दोस्ती करते तो हम किससे.मिलते ही नहीं,जहाँ में हमारे ख्याल के" आपके लिए यह ब्लॉग "सच्चा दोस्त" एक "पवित्र दोस्ती" का दायरा बढ़ाने की कोशिश के साथ ही अच्छे व बुरे अनुभवों को व्यक्त करता है.
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आईये! हम अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी में टिप्पणी लिखकर भारत माता की शान बढ़ाये.अगर आपको हिंदी में विचार/टिप्पणी/लेख लिखने में परेशानी हो रही हो. तब नीचे दिए बॉक्स में रोमन लिपि में लिखकर स्पेस दें. फिर आपका वो शब्द हिंदी में बदल जाएगा. उदाहरण के तौर पर-tirthnkar mahavir लिखें और स्पेस दें आपका यह शब्द "तीर्थंकर महावीर" में बदल जायेगा. कृपया "सच्चा दोस्त" ब्लॉग पर विचार/टिप्पणी/लेख हिंदी में ही लिखें.
रविवार, मार्च 20, 2011
मंगलवार, मार्च 08, 2011
दोस्ती कम, अश्लील बातें ज्यादा
"फ़ोन फ्रेंड्स क्लब-दोस्ती कम, अश्लील बातें ज्यादा"
आज अपनी पत्नी द्वारा फर्जी मुकद्दमों के कारण मानसिक "डिप्रेशन" की बीमारी के अलावा अनेकों बिमारियों की वजय से कुछ अच्छी रचनाएँ /लेख नहीं लिख/कह पाता हूँ. न्याय व्यवस्था के अधिकारियों द्वारा अपना कर्तव्य व फर्ज ईमानदारी से नहीं निभाने के कारण कैसे मेरा जीवन और भविष्य लगभग चौपट हो गया है. इसलिए अपने ब्लॉग पर भी नियमित रूप से पोस्ट नहीं लिख पाता हूँ. मगर अपने "सच्चा दोस्त बनो और सच्चा दोस्त बनाओ" अभियान के तहत दोस्तों की मदद मिलने के बाद अपनी खोजी पत्रकारिता के अनुभव से एक लेख "फ़ोन फ्रेंड्स क्लब-दोस्ती कम, अश्लील बातें ज्यादा" मैंने मासिक पत्रिका "गृहलक्ष्मी" के लिए सन 2001 लिखा था. लेख प्रकाशित होने के 60 दिन बाद ही लेख में जिक्र सामाजिक समस्या का निवारण करते हुए सरकार ने ऐसे फ़ोन लाईन को बंद कर दिया था. जिससे युवा पीढ़ी पर दुष्प्रभाव पड़ रहा था. जिसे पत्रिका ने अपने टाईटल (शीर्षक) पेज पर भी प्रमुख्यता से प्रकाशित किया था. उम्मीद है आपको उपरोक्त लेख जरुर पसंद आयेगा. अगर आपके पास समय हो तो कृपया किल्क करके संलग्न लेख "फ़ोन फ्रेंड्स क्लब-दोस्ती कम, अश्लील बातें ज्यादा" जरुर पढ़ें.
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