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रविवार, मार्च 20, 2011

बड़ी नाजुक होती है दोस्ती की डोर-2

अपनी पत्नी द्वारा दर्ज फर्जी मुकद्दमों के कारण मानसिक "डिप्रेशन" की बीमारी के अलावा अनेकों बिमारियों की वजय से कुछ अच्छी रचनाएँ /लेख  नहीं लिख/कह पाता  हूँ. इसलिए अपने ब्लॉग पर भी नियमित रूप से पोस्ट नहीं लिख पाता हूँ. मगर अपने "सच्चा दोस्त बनो और सच्चा दोस्त बनाओ" अभियान के तहत दोस्तों की मदद मिलने के बाद और अपने अनुभव के साथ ही अपनी खोजी पत्रकारिता के अनुभव से दोस्ती पर एक लेख "बड़ी नाजुक होती है दोस्ती की डोर" मैंने मासिक पत्रिका "गृहलक्ष्मी" के लिए सन 2001 लिखा था. लेख प्रकाशित होने के बाद ही पत्रिका को काफी पत्र प्राप्त हुए थें. जिसमें उपरोक्त लेख के बारे में जिक्र था. फिर पत्रिका ने अपनी नवीनतम पत्रिका में कुछ पत्रों को स्थान भी दिया था. उम्मीद है आपको उपरोक्त लेख जरुर पसंद आयेगा. अगर आपके पास समय हो तो कृपया किल्क करके संलग्न लेख "बड़ी नाजुक होती है दोस्ती की डोर" जरुर पढ़ें.

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