सन 2000-2001 में मेरी दोस्ती की पवित्रता के विज्ञापन समाचारों पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए.विज्ञापनों की प्रतिक्रिया में दूषित मानसिकता और अच्छी विचारधारा के लोगों से पत्र-व्यवहार द्वारा कटु और अच्छे अनुभव प्राप्त हुए. जिसका जिक्र मैंने अपनी पहली पोस्ट में किया था. लड़कियों के पत्र मिलने पर एक छोटा-सा पत्र उनके भेजे पत्र के जवाब में हस्तलिखित भेजने के साथ ही सभी लड़कियों को कोमन एक पत्र "सच्चे दोस्त बनो अभियान" के तहत टाईप करवाकर रखे की फोटोस्टेट प्रति भेजता था. उस पत्र में मेरी विचारधारा और समाज व देश की प्रति जिम्मेदारी के साथ फर्ज और कर्तव्य को पता चलता था. आप जाने एक 24-25 वर्ष के नौजवान की उस समय क्या सोच व विचारधारा हुआ करती थीं. टिप्पणियों की उम्मीद उनसे जो अच्छे विचार को महत्व देते हो.
दोस्ती शब्द से ही एक पवित्र रिश्ते का एहसास होता है अगर आप दोस्ती के वास्तविक अर्थ से अवगत है और अपनी दोस्ती को पूरे विश्वास,निष्ठां व वफादारी से निभाने की क्षमता रखते हैं तब ही आपको दोस्ती के लिए अपने हाथ बढ़ाने चाहिए.वरना यह कहकर संतोष कर लीजिए कि-"दुनिया में राज-ए-दिल,दोस्ती करते तो हम किससे.मिलते ही नहीं,जहाँ में हमारे ख्याल के" आपके लिए यह ब्लॉग "सच्चा दोस्त" एक "पवित्र दोस्ती" का दायरा बढ़ाने की कोशिश के साथ ही अच्छे व बुरे अनुभवों को व्यक्त करता है.
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बुधवार, अप्रैल 13, 2011
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